شعر شماره پنجاه و پنج / صفحه 94

دم غـــارِ مــــولهها خَــــف کِـــــردُم! مــــولههایی بِـــدییُم کــــف کردم!
یــــکی وا زور هِــنکشی یَــگ دانه! کِـــه تِــرِخت صــاف بِرِوِه یَگ لانه
مِنِ مــــاتُم بِــــزه اِز ایــــن کــارش! چِـــطَری یا دِتُـــپی ایـــن غـــــارش
دو هـــزار مــــوله هِمین رایه هِرَن! هی تِرِخت هُنکُنن و چــایه هرن
درسِ امـــــید بِـــــگِتُم اِز مـــــــوله! نــا امــیدی بُــــخدا اِز غـــــــــــوله
غــول بــی شــاخَک و اَلدَنگِ عِــلیل نــا امــید هُــنخوره اُردنــگِ ذِلـیل
هــاج و واج هــابییُم اِز یَـگ ژوله! درس خُـــبی هـــادامِ یـــــگ موله
درس دو یا هادو وا دو همه وَخت نِـــگیرُم تـا هِنتانُم کارامه سخت
هــــمه چــی اِز رو حسابِ همه جا! دشت، دریا، کوه و صحرا وا سِجا
چـــطو دنـــیا هــمه چیزش اَفسُنِ؟ مــــــــولهیِ لَـــقه نِــــکردی آسُــنِ؟

عباس قندهاری وچّه ناف شاهرود
1401/04/27



